सिक्ख धर्म में दशहरे का महत्व

*गुरु गोबिंद सिंह जी ने अंबाला के लखनौर में पहनी थी सबसे पहली दस्तार*

दशहरे पर्व का ताल्लुक भले ही हिंदू धर्म से हो, लेकिन अंबाला में दशहरा का एक और रोचक इतिहास है और ये इतिहास सिख धर्म से जुड़ा है। यहां दशहरा के दिन ही सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी को बाल अवस्था में सबसे पहले दस्तार पहनाई गई थी, उनके मामा किरपाल चंद ने विधि विधान के साथ अपने भांजे बाल गोबिंद राय की दस्तारबंदी की थी। तभी से अंबाला में गुरु गोबिंद सिंह जी के ननिहाल गांव लखनौर साहब में दशहरे वाले दिन न केवल जबरदस्त मेला भरता है, बल्कि पंजाब, जम्मू कश्मीर, हरियाणा, राजस्थान यूपी, समेत विदेशों से एन.आई.आर. सिख परिवार के लोग अपने बच्चों को इसी दिन यहां गुरुद्वारा साहिब में लाते हैं और उनकी पहली बार दस्ताबंदी करवाई जाती है। दशहरे वाले दिन यहां मेले में उमड़ती भीड़ और दस्तारबंदी का नजारा देखने लायक होता है, उल्लेखनीय है कि दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी की माता गुजर कौर के अंबाला के लखनौर गांव में मायके थे, गुरु गोबिंद सिंह जी जब पैदा हुए तो कुछ सालों बाद वे पटना से वापस पंजाब जा रहे थे। तभी गुरु गोबिंद सिंह ने करीबन छह माह यहां अंबाला में अपने ननिहाल गांव लखनौर साहिब में अपनी माता के साथ रुके थे। गुरु गोबिंद सिंह जी की उम्र करीबन नौ साल की थी। सिख धर्म के मुताबिक ये रिवाज है कि भांजा की सबसे पहले दस्तारबंदी उसका मामा अपने हाथों से करता है। इसलिए माता गुजर कौर ने अपने बेटे गुरु गोबिंद सिंह जी की दस्तारबंदी यहीं लखनौर साहब में विजयदशमी यानी दशहरे वाले दिन करवाने का फैसला किया और बहुत ही शान से विधि विधान के साथ यहां *गुरु गोबिंद सिंह जी के मामा किरपाल चंद जी*
ने उन्हे सबसे पहले दस्तार पहनाई, जिस दिन गुरु गोबिंद सिंह जी की पहली बार दस्तारबंदी हुई, उस दिन चूंकि दशहरा था, इसलिए सिख धर्म में दशहरे के पर्व को इस आस्था से जोड़कर देखा जाता है और यहां गुरु गोबिंद सिंह जी के ननिहाल गांव में बने लखनौर साहब गुरुद्वारे में जबरदस्त मेले का आयोजन किया जाता है।